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प्रदेश में अविलम्ब वित्त रहित शिक्षा नीति समाप्त हो : आलोक

पटना : अनुदानित शिक्षा नीति सभ्य और शिक्षित समाज में कोढ़ की तरह है। बिहार के वैशाली जिले में वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सारण जिला प्रमंडल सह संयोजक आलोक आजाद ने यह बात कही। वर्तमान परिवेश में अनुदानित शिक्षकों की दशा और दिशा विषय पर आयोजित सेमिनार में सह संयोजक ने कहा कि बहुत कम अनुदान राशि के रुप में मिलने वाले वेतन पर शिक्षकों को बच्चों को पढ़ाना पड़ता है। इसकी प्रतिमाह की गणना की जाए तो कहीं-कहीं प्रतिमाह दस हजार तो कहीं-कहीं पंद्रह हजार भी नहीं मिल पाता है इसके बाद भी शिक्षक पीछे नहीं हट रहे हैं और पढ़ा रहे हैं। श्री आजाद ने कहा कि प्रदेश सरकार को जल्द से जल्द वित्त रहित शिक्षा नीति को खत्म करना चाहिए।

श्री आजाद ने कहा कि अनुदानित शिक्षा पद्धति को जल्द से जल्द खत्म करने पर बल दिया और कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को वित्तरहित और नियोजित शिक्षकों की समस्या को लेकर गम्भीर होना चाहिए। राज्य सरकार को इस दिशा में लगातार काम करने की आवश्यकता है। उन्होंने आशा जताया कि आने वाले दिनों में इसका रास्ता अवश्य निकलेगा। अनुदानित और वित्तरहित शिक्षा व्यवस्था पुराने दिनों की बात होगी।

सह संयोजक ने कहा कि अनुदानित या वित्तरहित शिक्षक आर्थिक संकट से लगातार गुजर रहे हैं। इस पर सकारात्मक पहल होनी चाहिए। मुख्यमंत्री को अनुदानित और वित्तरहित शिक्षकों की दशा‌ तथा वितरण रहित शिक्षा नीति को समाप्त कराने की पहल कर शिक्षकों को सम्मान दिलाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि वर्तमान में शिक्षकों की स्थिति काफी दयनीय है। अनुदानित, वित्तरहित और नियोजित शिक्षक तथा पुस्तकालयाध्यक्ष गम्भीर आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। यह व्यवस्था सरकार की शिक्षा नीति पर प्रश्न खड़ा करती है। राज्य और केंद्र सरकार को इसका जल्द  समाधान निकालना चाहिए।

श्री आजाद ने कहा कि सेमिनार में आए सभी शिक्षकों के सुझाव का एक मसौदा तैयार किया जायेगा। जिसे बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष केदारनाथ पाण्डेय, शिक्षक प्रतिनिधियों, शिक्षा विभाग के सभी उच्च पदाधिकारियों के साथ साथ मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष को दी जायेगी, जिससे  इसपर आवश्यक पहल करते हुए केंद्र और राज्य सरकार पर दवाब बनाकर समाधान का रास्ता निकाला जा सके।

उन्होंने कहा कि छह वर्ष से इंटर और नौ वर्ष से डिग्री शिक्षकों के अनुदान की राशि बकाया है। जिससे वित्तरहित कालेजों के अनुदानित शिक्षक, कर्मी और उनके परिजनों के समक्ष लॉकडाउन में भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। राज्य सरकार से कोरोना महामारी जैसे राष्ट्रीय विपदा की घड़ी में माध्यमिक से डिग्री स्तर तक के वित्तरहित कर्मी और अनुदानित कोटि के मदरसा तथा संस्कृत शिक्षण संस्थानों के शिक्षक कर्मचारियों को लंबित अनुदान राशि भुगतान करने की मांग की है।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने घोषणा भी किया है कि वित्तरहित शिक्षक कर्मियों को विगत छह वर्षों के बकाए अनुदान की राशि उपलब्ध करा दी जाएगी। सरकार ने यह भी कहा था कि होली से पहले ही कर्मियों के खाते में पैसा भेज दिया जायेगा, इसके लिए वित्त विभाग से पैसे भी आवंटित हो गया था लेकिन पैसा नहीं गया। जिससे कर्मी लॉकडाउन में दाने- दाने को तरस गये थे।

आलोक ने कहा कि वित्त रहित शिक्षक-कर्मियों के लाखों रुपए सरकार के पास बकाया के रूप में हैं। जिससे शिक्षकों को अपने परिवार के लोगों को भोजन और दवा के लिए दूसरे के पास हाथ फैलाना पड़ रहा है।

उन्होंने कहा कि अनुदानित और वित्तरहित शिक्षा नीति जैसे कोढ़ को समाप्त करने की दिशा में वर्तमान सरकार ने तत्परता तो दिखाया, लेकिन लेकिन अनुदान भुगतान के नाम पर सुस्त हो गयी। श्री आजाद ने राज्य सरकार से मानवता और न्यायहित में अविलंब अनुदान राशि शिक्षक-कर्मियों के खाते में भेजने की मांग की।

 

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