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वैशाली के मत्स्य पालक किसानों ने सीखा जैविक मछली उत्पादन की तकनीक

पटना : देश में लोगों को अब जैविक मछली खाने को मिलेगी। बिहार के वैशाली जिले से तीस किसानों के एक दल ने जैविक मछली उत्पादन की तकनीक को जानने- समझने के लिए ओडिशा के भुवनेश्वर में स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केन्द्रीय अंतःस्थलीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान का दौरा जागृति कला केन्द्र के सहयोग से किया।  संस्थान के मत्स्य वैज्ञानिक और जैविक मछली के शोधकर्ता सत्य नारायण सेठ्ठी ने बताया कि जैविक मछली के उत्पादन में किसी भी प्रकार के दवा का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। जैविक मछली के जीरा उत्पादन के लिए भी हारमोन पिट्यूटरी ग्रंथी  से बनायी जाती है। मछलियों को बीमारियों से बचाव के लिए हर्बल दवाओं का उपयोग किया जाता है। इस दौरान तालाब में केवल चूना का प्रयोग किया जाता है, जबकि मछली पालक रासायनिक खाद और अन्य दवाओं का इस्तेमाल मछली पालन के दौरान करते हैं। जो मानव शरीर पर घातक प्रभाव डालते हैं। श्री सेट्ठी ने बताया जैसे जैविक फसल का उत्पादन किया जा रहा है। उसी प्रकार जैविक मछली भी तैयार की गयी है। उन्होंने कहा कि विदेशों में जैविक खाद्य पदार्थों का ही प्रयोग किया जाता है। दल का नेतृत्व कर रहे जागृति कला केन्द्र के सचिव डॉक्टर अभयनाथ सिंह ने बताया कि इस मछली का विदेशों में भी विपणन किया जा सकता है। वर्तमान में अमेरिका, दुबई और इंग्लैंड जैसे देश जैविक उत्पादों को ही अपने देश में बिक्री की अनुमति देते हैं।

सचिव ने कहा कि इस बात की जानकारी होने पर उन्होंने केन्द्र सरकार से आग्रह किया कि उनके संस्थान में निबंधित महिला और पुरूष किसान इस तकनीक की जानकारी लेना चाहते हैं। जिससे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के किसानों की आय दोगुनी हो इस नारे को बुलंदी मिले। उन्होंने कहा कि किसानों के दल को ओडिशा के भुवनेश्वर में स्थित केन्द्रीय मीठाजल जीवपालन अनुसंधान संस्थान में इसकी पूरी जानकारी दी गयी है। जो किसान इस तकनीक से मछली पालन करना चाहते हैं। उसमें संस्थान भी उनकी पूरी मदद करेगा। श्री सिंह ने कहा कि उनका सपना रहा है कि गांव का कार्यक्रम गांव में और किसानों का कार्यक्रम किसानों के बीच ही हो। जिससे किसान और गांव भी अपनी भागीदारी किसी भी कार्यक्रम में कर सकें।        किसानों के दल में शामिल महिला किसान अनीता देवी ने बताया कि इससे किसानो को काफी लाभ होगा। लोगों का बीमारियों से बचाव भी होगा। महिला किसान ने कहा कि महिलाएं कुपोषण का शिकार हैं। मछली प्रोटीन का एक सशक्त माध्यम है। वर्तमान में रासायनिक तरीके से मछली का उत्पादन ज्यादा लाभ के लिए किया जाने लगा है। जिससे मानव शरीर में कई समस्याएं हो रही हैं। दल में शामिल किसान नीरज ने कहा कि इससे युवा किसानों को रोजगार मिलेगा और पर्यावरण की भी रक्षा हो सकेगी। नीरज ने बताया कि विदेशों में जैविक उत्पादों की ज्यादा मांग है। हर वर्ष आम और लीची जैसे अधिकांश फल केवल इस लिए  विदेशों में नहीं जा पाते हैं क्योंकि वहां जैविक उत्पाद की ही मांग है। उन्होंने कहा कि यह भारत का सौभाग्य है कि इस देश में ऐसे वैज्ञानिक हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें भी इस महत्वपूर्ण तकनीक की जानकारी मिली है। जो आने वाले समय में लोगों को आर्थिक मददगार होगी।

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