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प्राचीन धरोहरों को समेटे हरिहर क्षेत्र मेला शुरू

पटना (मनीष कुमार)। बिहार के सारण जिले के हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले की ख्याति पूरी दुनिया में एक पशु मेले के रूप में है, लेकिन इधर कुछ समय से मेले में पशुओं का आना कम हो गया है। जिससे पशु पालकों को उम्दा नस्ल के पशु मिलने बंद हो गये हैं, लेकिन आज भी पशु मेले के रूप मे ही पूरी दुनिया में इसकी पहचान बनी हुई है। मेला अध्यात्मिक, धार्मिक और एतिहासिक धरोहरों को आज भी सहेजे हुए हैं। देश ही नहीं पूरी दुनिया में जब इसकी शुरूआत होती है धूम मच जाती है। एक महीने से अधिक दिनों तक चलने वाले इस मेले को लेकर स्थानीय लोगों के साथ साथ बाहर से आने वाले विदेशी और देशी पर्यटकों, साधु संतों और व्यवसायिक गतिविधियों में शामिल लोगों में काफी उत्साह है। विश्व विख्यात सोनपुर मेला इस वर्ष 10 नवंबर से शुरू हो रहा है। जिसे सरकार 32 दिनों तक लगातार अपना संरक्षण देगी। स्थानीय स्तर पर इस  मेले को छत्तर मेला के नाम से भी लोग जानते हैं। हिंदू मान्यताओं के अलावे हरिहर क्षेत्र में लगने वाले इस मेले का जिक्र सिख और बौद्ध धर्म ग्रंथों में भी मिलता है। इस मेले का चिडि़या बाजार भी कभी बहुत प्रसिद्ध हुआ करता था, लेकिन कानून के कारण अब इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गया है।

मेले का एक दूसरा पक्ष भी है। देश के ख्याति प्राप्त महिला और पुरूष कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन मेले में स्थित सांस्कृतिक मंच से करते हैं। हर दिन बिहार सरकार का पर्यटन विभाग सांस्कृतिक मंच से कलाकारों के कार्यक्रम की प्रस्तुत कराता है। कहा जाता है कि हरिहरनाथ मंदिर विश्व का ऐसा इकलौता मंदिर है जिसमें हरि (विष्णु) और हर (शिव) एक साथ विराजमान हैं।  

इस मंदिर के पास ही गंगा और गंडक नदियों का संगम है। जहां हाथी (गज) और मगरमच्छ (ग्राह) के बीच हरिहर क्षेत्र सोनपुर में युद्ध हुआ था। जिसमें अंत में भगवान विष्णु ने आकर हाथी की जान बचाई और मगरमच्छ का उद्धार किया था। कहा तो यह भी जाता है कि यह मेला कभी जंगी हाथियों का सबसे बड़ा केंद्र था। मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त, मुगल सम्राट अकबर और 1857 के गदर के नायक बाबू वीर कुंवर सिह ने भी से यहां हाथियों की खरीदारी की थी। बाद में मेले में प्रदर्शनी और बिक्री के लिए आने वाले हाथी भी इस की खास पहचान हुआ करता थे। कानून के अनुसार मेले में हाथी के लाने पर कोई रोक नहीं है, लेकिन उनकी खरीद बिक्री पर रोक है।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा और गंडक में स्नान कर बड़ी संख्या में भक्त बाबा हरिहरनाथ पर जल चढ़ाते हैं। लोग मानते हैं कि पूर्णिमा के दिन यहां स्नान कर बाबा हरिहर नाथ पर जलाभिषेक करने से गो-दान का फल मिलता है, जिससे सारे पाप मिट जाते है। सोनपुर मेले के प्रति विदेशी पर्यटकों में भी खास आकर्षण देखा जाता है। मेला और साधुओं के बीच का रिश्ता अटूट और अनोखा है। सोनपुर मेले में भी बड़ी संख्या में देश के विभिन्न हिस्सों से साधु संत आते हैं।  मेले के दौरान स्थानीय साधु गाछी का इलाका भजन-कीर्तन और साधना का केंद्र बन जाता है। मेले के अवसर पर इस बार गंडक नदी पर बने अंगरेजों के जमाने के रेलवे पुल को भी आकर्षक तरीके से सजाया गया है। यह मेला अपने थियेटर और उनके कलाकारों के लिए भी प्रसिद्ध रहा है। इस बार मेले में सात थियेटर कंपनियां आ रही है। सारण जिला प्रशासन का दावा है कि पूर्व में वहां अश्लील कार्यक्रमों पर अंकुश लगा रहेगा। उन पर खास निगरानी रखे जायेगी। कार्यक्रम शुरू होने के पहले थियेटर के कलाकार मंच पर एक-एक कर  आती जाती हैं और अपनी अदा से मेला के दर्शकों को आकर्षित करती हैं। बिहार की राजधानी पटना से लगभग 25 किलोमीटर दूर और वैशाली जिला मुख्यालय से 3 किलोमीटर तथा सारण जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर की दूरी पर सोनपुर में यह मेला लगता है। इस बार भी  कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ गंगा स्नान और बाबा हरिहर नाथ पर जलाभिषेक करने के लिए पहुंचने लगे हैं।

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