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नियोजित शिक्षकों की मौत के लिए जिम्मेदार है बिहार सरकार : आजाद

पटना : बिहार में नियोजित शिक्षक भूख से मर रहे हैं और राज्य सरकार सो रही है।   बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रमंडलीय सह संयोजक आलोक आजाद ने जूम विडियो कान्फ्रेसिंग के माध्यम से शिक्षकों की बैठक को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री से प्रश्न किया है कि आखिर कितने बलिदान के बाद आपकी नींद टूटेगी। आपका कलेजा और कितने शिक्षकों की मौत के बाद शांत होगा। सह संयोजक ने कहा कि वैश्विक महामारी कोरोना से जितने लोग राज्य में नहीं मरे होंगे उससे अधिक शिक्षकों की मौत एक माह में हो गयी है। उन्होंने कहा कि नियोजित शिक्षक अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर हैं। शिक्षक गलत मांग नहीं कर रहे हैं, लेकिन राज्य सरकार मौन साध कर बैठी है और शिक्षक मर रहे हैं। अगर एक विधायक मरा होता तो सड़क से लेकर सदन तक हाहाकार मच जाता और श्रद्धाजंलि देने वालों की लाइन लगी होती लेकिन मृत शिक्षकों के बेसहारा परिजनों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। श्री आजाद ने कहा कि अब तक 42 हड़ताली नियोजित शिक्षकों की मृत्यु पिछले एक माह में हो चुकी है। जो शिक्षक आंदोलन के इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी त्रासदी है।

सह संयोजक ने कहा कि प्रदेश सरकार को शिक्षकों की परवाह नहीं है, जो सरकार की राज्य में शिक्षा और शिक्षकों के प्रति असंवेदनशीलता को दर्शाता है। साथ ही राज्य के गरीब, वंचित, दलित, पिछड़ों जैसे लोगों के बच्चों की शिक्षा के प्रति सरकार की निष्क्रियता और निकृष्ट सोंच को दर्शाता है।

उन्होंने कहा की हड़ताली शिक्षक पहले से ही सरकार के नियोजनवाद के दंश को झेल रहे थे और अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए लोकतांत्रिक तरीके से अपनी वाजिब मांगों को लेकर 25 फरवरी से हड़ताल पर हैं, मगर अपने शासन को सुशासन कहने वाली बिहार सरकार असंवैधानिक रूप से लगातार अल्प वेतनभोगी हड़ताली शिक्षकों का कार्य अवधि का भी वेतन बंद कर दमनात्मक कार्रवाई कर रही है। जिससे लगातार प्रताड़ना के कारण अधिकांश शिक्षक हार्ट अटैक, ब्रेन हेमरेज और पैसे के अभाव में इलाज न करवा पाने के कारण असमय काल के गाल में समा गए हैं। यदि इन शिक्षकों के परिवार की मृत्यु की संख्या को इसमें जोड़ा जाए तो यह बहुत बड़ी संख्या होगी।

सह संयोजक ने कहा कि कोरोना वायरस से पैदा हुए संकट के दौर में अपने सामाजिक दायित्वों के तहत न सिर्फ जागरुकता अभियान चला कर बल्कि विद्यालयों में बनाये गए कोरेंटाइन सेंटर में सेवा देने, लोगों को मुफ्त भोजन कराने का काम शिक्षक कर रहे हैं। इस विपदा की घड़ी में अपने एक दिन का वेतन जो लगभग तीन करोड़ से अधिक की राशि होगी मुख्यमंत्री राहत कोष में देने का फैसला भी बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ ने किया है।

उन्होंने कहा की वर्तमान समय में हड़ताली शिक्षकों के बाल-बच्चे और उन पर आश्रित माता-पिता समेत उनका पूरा परिवार सरकार की आर्थिक और मानसिक प्रताड़ना का शिकार हो रहा है जो मानवाधिकार के उल्लंघन का मामला भी बनता है।

श्री आजाद ने कहा कि शिक्षा विभाग अपने ही आदेशों की धज्जियां उड़ा रहा है। विभाग ने अपने पूर्व में दिये गये आदेशों में कहा था कि किसी भी हालात में शिक्षकों का वेतन नहीं रोका जाए। यह उनके मानवीय अधिकार का हनन होगा। विभाग ने अपने आदेशों में यह भी माना है कि इसका प्रभाव शिक्षक के साथ-साथ उसके परिवार पर भी पड़ता है।

सह संयोजक ने शिक्षा विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव स्व. डॉ मदन मोहन झा और वर्तमान अपर मुख्य सचिव आरके महाजन के उन आदेश पत्रों का हवाला दिया। जिसमें इन अधिकारियों ने यह माना है कि उच्च न्यायालय की ओर से दिये गए नियमन और मानवाधिकार आयोग की ओर से दिये गए गए निर्देश के तहत किसी भी शिक्षक का वेतन-भत्ते को रोका नहीं जा सकता है। अपने अधीन अधिकारियों को दिये गए निर्देश में इन दोनों अधिकारियों ने कहा है कि कार्य के बदले वेतन का भुगतान किसी भी कर्मी का नैसर्गिक अधिकार है।

उन्होंने कहा कि शिक्षा मंत्री बार-बार मीडिया के माध्यम से यह कहते रहे हैं कि हड़ताली शिक्षकों से वार्ता कर इनकी समस्याओं का सकारात्मक समाधान करना चाहते हैं, जबकि वस्तु स्थिति यह है कि ऐसा बयान देकर शिक्षा मंत्री शिक्षकों को गुमराह कर रहे हैं। शिक्षा मंत्री एक ओर प्रदेश में शिक्षा के बेहतरी की बात करते हैं लेकिन हड़ताली शिक्षक संगठनों से  अबतक वार्ता के लिए तिथि, स्थान और समय निर्धारित नहीं कर रहे हैं।

सह संयोजक ने राज्य सरकार से अपील करते हुए कहा कि अपनी हठधर्मिता को छोड़ कर शिक्षकों की उनका हक दें और हड़ताल समाप्त करा शिक्षा को आगे बढ़ायें। बैठक में परवेज अनवर, मिथिलेश ठाकुर, अनिल पंडित, संतोष कुमार, अनिल तिवारी, रामबच्चन शर्मा, ठाकुर सुनील सिंह सहित कई शिक्षक और शिक्षिकाएं उपस्थित थे।

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