GDP Full Form In Hindi

जीडीपी का फुल फॉर्म

GDP अर्थात Gross Domestic Product माना जाता है। इसका हिन्दी अनुवाद सकल घरेलू उत्पाद है, लेकिन यह जीडीपी है क्या। इसे जानने के लिए लोगों के मन में कई सवाल उठते हैं। जीडीपी शब्द सुनते ही लोगों के जेहन में यह बात आती है कि यह किसी भी देश की अर्थ व्यवस्था को सूचित करता है। इसके बढ़ने पर देश की तरक्की मानी जाती है जबकि इसके गिरने पर उस देश के लोगों की आमदनी कम होने की बात समझी जाती है। यह अर्थव्यवस्था को मापने का एक बुनियादी तरीका भी माना जाता है या है।

वर्ष 1930 के दशक में दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त हो गया था। पूरा विश्व आर्थिक मंदी की चपेट से परेशान थी। अर्थशास्त्रियों के अनुसार इस मंदी से लगभग 10 वर्ष बाद विश्व बाहर निकल सकी। इसके बाद हर देश ने आर्थिक विकास की जानकारी कैसे हो इस पर काम करना शुरू किया। जिससे यह जानकारी मिल सके कि देश की आर्थिक विकास दर क्या है।

इस समय किसी भी देश के पास अपने आर्थिक विकास दर के मापने की कोई व्यवस्था नहीं थी। जिसके बाद वहां पर काम कर रही बैंक की कम्पनियां सामने आयीं। इन बैंकों ने सरकारों को भरोसा दिलाया कि वह आर्थिक विकास की जानकारी रखेंगी और उसे लोगों के सामने प्रस्तुत करेंगी। जिसके बाद बैंकों ने इस काम को करना शुरू कर दिया। इसके आंकड़े जब सामने आये तो लोगों ने इस पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया। जब इसकी जांच की गयी तो इसमें कई खामियां सामने आयीं। जो यह बता रही थी कि इससे सही आकलन नहीं किया जा सकता।

इसके बाद अमेरिकी अर्थशास्त्री साइमन ने इसकी जानकारी अपने देश को दी। इसे अमेरिकी कांग्रेस में प्रस्तुत किया गया। यह कार्य वर्ष 1935 से लेकर 43 तक किया गया। जिसके बाद पहली बार GDP अर्थात सकल घरेलु उत्पाद का विचार लोगों के सामने आया।

इसके बाद वर्ष 1944 में ब्रेटन बुड्स सम्मेलन हुआ। तब विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अर्थ व्यवस्था और किसी देश के वार्षिक बढ़ोत्तरी का पता लगाने के जीडीपी शब्द का प्रयोग किया। जो काफी प्रचलित हो गया और किसी भी देश के आर्थिक विकास दर का मापने का तरीका मान लिया गया।

ऐसा माना जाता है कि जीडीपी अर्थात सकल घरेलू उत्पाद किसी भी देश में अर्थव्यवस्था के अंतर्गत जीवन स्तर मापने का पैमाना नहीं बन सकता। ऐसा माना जाता है कि अगर किसी भी देश में लोगों की आय गिरेगी, लेकिन जीडीपी बढ़ेगा ही। जिससे यह माना जाने लगा कि जीडीपी से जीवन स्तर का कोई अधिक सम्बंध नहीं है।

जीडीपी एक देश के अंदर एक वर्ष के भीतर सभी माल और सेवा का बाजार मूल्य भी माना जाता है। सकल घरेलू उत्पाद को तीन प्रकार से बताया जा सकता है।

पहला – यह एक तय समय में एक राष्ट्र के अंदर उत्पादन किये जाने वाले सभी माल और सेवा के लिए किये गये कुल खर्च के बराबर है।

दूसरा – यह एक अवधि में एक राष्ट्र के अंदर सभी उद्योग की ओर से उत्पादन की हर अवस्था पर सभी वर्धित मूल्य और उत्पादों पर अनुदान रहित टैक्स के जोड़ के बराबर होती है।

तीसरा – यह नियत समय में राष्ट्र उत्पादन के माध्यम से उत्पन्न आय के जोड़ के बराबर है।

इसके नापने और मात्रा निर्धारण की सबसे महत्वपूर्ण विधि है, खर्च या उसकी व्यय व्यवस्था।

इसमें सकल घरेलू उत्पाद GDP – खर्च + सरकारी खर्च + लगायी गयी पूरी राशि + (निर्यात – आयात) अर्थात घरेलू स्तर पर होने वाले व्यय के भाग को घटा कर और इसे फिर से घरेलू क्षेत्र में जोड़ कर समायोजित किया जाता है। इसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है। जो अर्थशास्त्र के नियमों के अनुसार चलता है।

GDP – C(उपभोग)+I(निवेश)+G(सरकारी खर्च)+ (X-M) शुद्ध निर्यात

इन शब्दों की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है –

उपभोग (C) – इसमें एक व्यक्ति ने कितना खर्च किया अपने निजी जीवन में यहां पर उसका गणना की जाती है। उदाहरण स्वरूप भोजन, स्वास्थ्य पर किया गया खर्च, मकान का किराया का खर्च इसमें शामिल होता है।

निवेश (I) – यह शब्द अपने आप में सब कुछ कह देता है अर्थात किसी भी स्थान पर किया गया खर्च एक प्रकार से निवेश कहला सकता है। इसके अतिरिक्त पैसे को उस स्थान पर खर्च किया गया है जहां से एक बार फिर उससे आमदनी ली जा सके। जैसे किसी उपकरण की खरीदारी करना। जब किसी पूंजी को सामान या सेवा में बदल दिया जाये तो उसे निवेश कहा जा सकता है। इस स्थान पर अर्थशास्त्र के नियमों के अनुसार शेयर की खरीदारी या हस्तांतरण को इसके अंदर नहीं रखा जाता है।

सरकारी खर्च (G) – इसका अर्थ है कि सरकार ने अपने कर्मियों और अन्य स्थानों पर कितना खर्च किया है। इसके अंतर्गत सरकार के कर्मचारियों का वेतन, कर्मचारियों के आवास, वाहन समेत अन्य खर्च, सेना, सरकार जो अन्य कई स्थानों पर पैसा लगा कर काम करती है। इसके अंतर्गत आते हैं।

निर्यात (X) – इसके अंतर्गत देश में तैयार माल किसी दूसरे देश को भेजा जाता है। जीडीपी में इसका अर्थ होता है कि ऐसी राशि जिसे देश में उत्पादन से मिल जाये।

आयात (M) – सामान्य भाषा में इसे दूसरे देश से आये सामान को आयातित माल कहा जाता है। आयात घट भी सकता है। इस स्थान पर आयात में आये सामान को जी G या सी C में शामिल कर लिया जाता है।

जीडीपी शब्द कई स्थानों पर सुनने को मिल जाता है। आम लोग इसे देश के विकास और गरीबी से आंकते हैं। अगर किसी देश की जीडीपी मजबूत है इसका अर्थ होता है कि वह देश काफी विकसित है अगर उसका जीडीपी कम है तो वहां गरीबी और आर्थिक स्तर कमजोर माना जाता है।

जीडीपी की सीमा (GDP) – इस शब्द का प्रयोग अर्थशास्त्री किसी भी देश के अर्थव्यवस्था को नापने के लिए व्यापक रूप से करते हैं। अर्थशास्त्री भी मानते हैं कि जीवन स्तर को जांचने के लिए इसका सीमित रूप से प्रयोग किया जाता है।

इसमें दो प्रकार की अर्थ व्यवस्था भी काम करती है।

  1. भूमिगत अर्थव्यवस्था – सरकारी स्तर जिसे आधिकारिक जीडीपी माना जाता है को भूमिगत अर्थव्यवस्था के अंतर्गत आता है। इसमें लेनदेन उत्पादन में योगदान देता है, जैसे गैरकानूनी व्यापार और कर विरोधी गतिविधियों की रिपोर्ट नहीं होती है। जिसके कारण जीडीपी का अनुमान कम हो जाता है।
  2. गैर मुद्रा अर्थव्यवस्था – इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में कोई राशि अर्थात पैसा लगातार नहीं आता है उसका कोई चक्र नहीं होता है। जिससे जीडीपी के आंकड़े गलत हो जाते हैं और असामान्य रूप से कम हो जाते हैं।
  3. माल की गुणवत्ता – इसमें किसी भी सामान की गुणवत्ता काफी महत्वपूर्ण हो जाती है। इसके अंतर्गत प्रचार के अनुसार सामान का नहीं मिलना आम होता है। माल अधिक टिकाउ नहीं होते हैं। कम्पनियां अपने लाभ के लिए कहती कुछ हैं और करती कुछ और हैं। जिससे माल की गुणवत्ता प्रभावित होती है। जो जीडीपी पर असर डालती है।
  4. उत्पादन क्या हो रहा है – जीडीपी उस कार्य को मापता है जो कहीं कोई परिवर्तन नहीं लाता है लेकिन किसी टूट और मरम्मत के क्षति के अनुसार किया गया हो। इसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि किसी प्राकृतिक आपदा या पुनर्निर्माण के दौरान अच्छी आर्थिक गतिविधि हो जाती है। इसमें स्वास्थ्य और रक्षा जैसे विभाग आते हैं।
  5. बाहरी कारण – इस क्षेत्र में आने वाले उत्पाद उपयोगिता को बढ़ाते हैं लेकिन उसकी खामियों में कमी नहीं करते हैं। इसमें अर्थशास्त्रियों ने जीडीपी के स्थान पर वास्तविक प्रगति संकेतक को प्रस्तावित किया है।

अर्थशास्त्रियों ने इस जीडीपी में कई परेशानियों के कारण नये विकल्प भी लाने शुरू कर दिये हैं।

जिनमें कई इस प्रकार हैं-

  1. वास्तविक प्रगति संकेतक GPI – इसके अंतर्गत आलाचनाओं की भी दी जाती है। इसके बाद आय का वितरण करने के लिए उसका समायोजन करते हैं अर्थात मिलाते हैं। स्वयं सेवी कामों के दामों को जोड़ते हैं और अपराघ तथा पर्यावरण में हो रहे प्रदूषण को घटा देते हैं।
  2.   धन अनुमान – विश्व बैंक ने संस्थान और मानव पूंजी के साथ पर्यावरण पूंजी को जोड़ने

लिए एक नये तरीके का विकास किया है। जो धन अनुमान कहा जा रहा है।

  1. निजी उत्पाद का अवशेष –

 

Leave a Comment